छठ पूजा का तीसरा दिन – संध्या अर्घ्य

 

छठ पर्व का तीसरा  दिन जिसे संध्या अर्घ्य  के नाम से जाना जाता है ,चैत्र या कार्तिक महीने के षष्ठी  को मनाया जाता है . पुरे दिन सभी लोग मिलकर पूजा की तैयारिया करते है . छठ पूजा के लिए विशेष प्रसाद जैसे ठेकुआ , कसार बनाया जाता है . छठ पूजा के लिए एक बांस की बनी हुयी टोकरी जिसे दउरा  कहते है में पूजा के प्रसाद ,फल डालकर देवकारी में रख दिया जाता है . वहां पूजा अर्चना करने के बाद शाम को एक सूप में नारियल , पांच प्रकार के फल ,और पूजा का अन्य सामान लेकर दउरा में रख कर घर का पुरुष अपने हाथो से उठाकर छठ घाट पर ले जाता है . यह अपवित्र न हो इसलिए इसे सर के ऊपर की तरफ रखते है . छठ घाट की तरफ जाते हुए रस्ते में प्रायः महिलाये छठ का ये गीत गाते हुए जाती है –

कांच ही बांस के बहंगिया बहंगी लचकत जाय
बहंगी लचकत जाय
बाट जे पूछेला बटोहिया बहंगी केकरा के जाय
बहंगी केकरा के जाय
तू तो आन्हर होवे रे बटोहिया बहंगी छठ मैया के जाय
बहंगी छठ मैया के जाय
ओहरे जे बारी छठि मैया बहंगी उनका के जाय
बहंगी उनका के जाय

 

 

नदी या तालाब के किनारे जाकर महिलाये घर के किसी सदस्य द्वारा बनाये गए चबूतरे पर बैठती है . नदी से मिटटी निकाल कर छठ माता का जो चौरा बना रहता है उस पर पूजा का सारा सामान रखकर नारियल चढाते है और दीप जलाते है . सूर्यास्त से कुछ समय पहले सूर्य देव की पूजा का सारा सामान लेकर  घुटने भर पानी में जाकर खड़े हो जाते है और डूबते हुए सूर्य देव को अर्घ्य देकर पांच बार परिक्रमा करते है .

सामग्रियों में, व्रतियों द्वारा स्वनिर्मित गेहूं के आटे से निर्मित ‘ठेकुआ’ सम्मिलित होते हैं। यह ठेकुआ इसलिए कहलाता है क्योंकि इसे काठ के एक विशेष प्रकार के डिजाइनदार फर्म पर आटे की लुगधी को ठोकर बनाया जाता है। उपरोक्त पकवान के अतिरिक्त कार्तिक मास में खेतों में उपजे सभी नए कन्द-मूल, फलसब्जी, मसाले व अन्नादि यथा गन्ना, ओल, हल्दी, नारियल, नींबू(बड़ा), पके केले आदि चढ़ाए जाते हैं। ये सभी वस्तुएं साबूत (बिना कटे टूटे) ही अर्पित होते हैं। इसके अतिरिक्त दीप जलाने हेतु, नए दीपक, नई बत्तियाँ व घी ले जाकर घाट पर दीपक जलाते हैं। इसमें सबसे महत्वपूर्ण अन्न जो है वह है कुसही केराव के दानें (हल्का हरा काला, मटर से थोड़ा छोटा दाना) हैं जो टोकरे में लाए तो जाते हैं पर सांध्य अर्घ्य में सूरजदेव को अर्पित नहीं किए जाते। इन्हें टोकरे में कल सुबह उगते सूर्य को अर्पण करने हेतु सुरक्षित रख दिया जाता है।

बहुत सारे  लोग घाट पर रात भर ठहरते है वही कुछ लोग छठ का गीत गाते हुए सारा सामान लेकर घर आ जाते है और उसे देवकरी में रख देते है .

 

कोसी  भराई 

संध्या अर्घ्य की मध्यरात्रि को पांच गन्ने के निचे मिट्टी के दिए जलाकर कोसी बरते है जिसे कोसिया भराई कहते है . ये रस्म जयादातर उन परिवार में होता है जिनके यहाँ कुछ समय पहले कोई बच्चा जन्म लिया है या किसी की शादी हुयी हो . यह रस्म देवकारी में , आँगन में या छत पर निभाई जाती है .  देवकरी में गन्ने के पेड़ से एक छत्र बनाकर और उसके नीचे मिट्टी का एक बड़ा बर्तन, दीपक, तथा मिट्टी के हाथी बना कर रखे जाते हैं . ये पांच गन्ने पंचतत्व (भूमि, वायु, जल, अग्नि और आकाश) का प्रतिनिधित्व करते हैं.

 

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