छठ पूजा के बारे में लोगन के जानकारी बहुत सिमीत बा, अधिकतर लोग बस अतने मान के चलेला कि पुत्र प्राप्ति खतिर करे वाला व्रत के नाव ह “छठ पर्व” जबकि इ एह महापर्व के बस एगो भाव ह, खलिहा इहे बात होखे अइसन नइखे। एह बात के समझे खातिर हमनी के कुछ दंत कथा, पौराणिक कथा के देखे के परी आ एह महापर्व के बारे में बुझे के परी।
छ्ठ पूजा के बारे में मान्यता आ उत्पति: ब्रम्हवैवर्त पुराण के जदि मानल जाउ त परमात्मा, सृष्टि के दु भाग में बंटले रहले। दखिन भाग पुरुष आ लेतरा हिस्सा से प्रकृति के जनम भइल रहे। इहे प्रकृति विश्व के मय स्त्री के अंश कला, कलांश, अलाशांश भेद से कइ गो रुप में लउकेला। एहि प्रकृति के छठा अंश जवन सबसे श्रेष्ट मानल गइल बा, ओह के देवसेना या षष्ठी देवी या छठ मइया कहल जाला। एह देवी के पुरा सृष्टि के मय लइका-लइकी के रक्षक आ लमहर उमिर देबे वाली देवी के रुप में मानल गइल बा।
ब्रह्मवैवर्त पुराण में राजा प्रियव्रत के बारे में बतावल गइल बा कि, राजा के कवनो लइका ना रहे। महर्षि कश्यप के आशिर्वाद से उनुका लइका भइल, बाकिर उ लइका जनमे से पहिले मर गइल रहे। राजा बहुत दुखी रहले कि ओहि समय आसमान से ब्रम्हा जी के मानस पुत्री छठ मइया के आगमन भइल जिनिका छुवला मात्र से राजा के लइका के जीउ-जान आ गइल। एहि से छठ पूजा के शुरुवात राजा कइले। एगो अउर मान्यता के हिसाब से मगध सम्राट जरासंध के कुष्ठ रोग भइल रहे त उ छठ पूजा कइलन जवना से उनुकर कुष्ठ रोग दुर हो गइल।
शर्याति नाव के राजा के सुकन्या नाव के लइकी, तपस्या में लीन च्वयन ऋषि के गलती से आंख कुछ दोसर कुछ बुझ के फोर देहली। जवना से ऋषि श्राप देहले। बाद में राजा अपना बेटी सुकन्या के बिआह ऋषि च्वयन से क देहले। सुकन्या बिआह के बाद नागकन्या लोगन के एह पूजा के करत देखली त उहो पुजा कइली जवना से च्वयन ऋषि के आंख नीमन हो गइल आ लउके लागल।
आचार्य विपिन शास्त्री के हिसाब से, सुर्यवंशी भगवान राम, लंका विजय के बाद जब अयोध्या अइले त, छठमी के दिने आपन कुलदेवता भगवान सुर्य के पूजा आराधना कइले रहले। सरजू नदी में डूबत आ उगत सुरज के अरघ देले रहले।
महाभारत युग में दुर्वाशा ऋषि के आशिर्वाद से छठमी के दिन सुर्य भगवान के आराधना के बाद कर्ण के उत्पति भइल रहे। राजा कर्ण सुर्य उपासक, दानवीर आ महा शक्तिशाली राजा रहले। त प्रकृति के छठा अंश, ब्रम्हा के मानस पुत्री, देवसेना यानि कि विश्व के बच्चन के लइकन के रक्षा करे वाली छठ मइया आ पुराण दंत कथा आदि के हिसाब से पूजा करे के इहे कुल्ह कारण दिआला।
कुछ वैचारिक कारण – छठ पूजा के पारिवारिक सामाजिक आ प्राकृतिक दृष्टिकोण: सुर्य के रोशनी, धरती प ना खाली प्रकृति के पोषक ह बलुक मनुष्य के शरीर में बहुत अइसन जरुरी तत्व बा जवन सुर्य से मिलेला। वर्तमान समय में फैशन के एह दौर में ” सन बाथ ” एगो प्रचलित शब्द ह। मूल रुप से हिन्दू समाज में सुर्य के पुजा सतमी के होखे ला बाकिर भोजपुरिया समाज, बिहार आ पुर्वांचल के लोग, सुर्य देव आ छठ मइया के एक संगे याद करत यानि कि कातिक के षष्ठी के एह पर्व के मनावेला। मूल रुप से बिहार आ पुर्वांचल के अधिकतर हिस्सा में साल में दू हाली छठ पूजा होला। एगो चैती आ दुसरका कतिकी। कतिकी छठ पूजा के सुर्यषष्ठी भी कहल जाला। जवन कि बहुत प्रसिद्ध ह आ अधिकतर लोग करेला ।
एह पूजा में बेटा के कामना, बेटी के कामना, पढल लिखल दामाद, नीमन घर-परिवार के कामना,प्रकृति, अपना आसपास के भौगोलिक वातावरण के समुचित विकास के कामना के संगे-संगे सम्पुर्ण सृष्टि के समुचित विकास के कामना कइल जाला।
जहाँ वर्ती अरघ दे के सुर्यदेव के अदितमल के धरती प प्रकृति के रक्षा खातिर निरंतर रोशनी देबे वाली व्यवस्था प धन्यवाद ज्ञापन करे ले त ओजुगे, प्राकृतिक संसाधन आ समाज के हर वर्ग के योगदान से रचाइल वस्तुअन के प्रयोग क के व्रती समाज के इहो मैसेज देबे के कोशिश करेले कि माटी से जुड़ल प्रकृति से जुड़ल हर वस्तु प्रवित्र ह। प्राकृतिक बनावट में कवनो भेदभाव नइखे। हर काम के बराबर समाज के बनावे में बराबर योगदान बा।
एकही घाट प हर वर्ग, हर रुप रंग, हर तरह के आर्थिक स्थिति वाला लोग अरघ देले पूजा करेले जवन समाज के एकरुप, एक भाव, एक लेखा होखे के बहुत बड़ उदाहरण ह।डूबत आ उगत सुरज के अरघ दे के छठ व्रती पुरा मानव जाति के इ सनेस देबे के कोशिश करेले, कि मनुष्य के अपना आस-पास अपना धरती प हर वस्तु के चाहे उ अवसान प होखे भा उचाई प चढत होखे, उचित आ पूरा सम्मान देबे के चाहीं।
छठ पूजा के वर्तमान विस्तार आ बदलाव: मूल रुप से छठ पूजा बिहार, झारखंड के कुछ हिस्सा, पुर्वांचल के कुछ हिस्सा आ नेपाल के तराई क्षेत्र के कुछ हिस्सा में बहुत पहिले से मनावल जाला। बाकिर अब इ पर्व विश्व भर मे पसर फइल गइल बा। मूल रुप से छठ पूजा के प्राकृतिक संरचना आ एह पूजा के पाछे के सोच एकर व्यापकता के खलिहा देसे ने बिदेस ले के गइल आ वर्तमान समय में गल्फ, अमेरिका, युरोप, आस्ट्रेलिया आदि क्षेत्रन में पुरबिया, बिहारी लोग छठ पूजा क रहल बा। मूल रुप से इ बिना कवनो मुर्ति मंदिर के पूजा ह, एह में कवनो मंतर जंतर ना होला, बावजूद एकरा, अब गते गते सुर्य पूजा के मंत्र आ सुर्य मंदिर आदि बने लागल बा जवना के लोग छठ पूजा से जोड़ेला। अरघ देबे खातिर जवन सुपली होला उ कांच बांस के बनल रहेला, बाकिर अब गते-गते पीतर के सुपली से लोग अरघ देबे लागल बा। पहिले गंगाजी के किनार प, सरजू जी के किनार प छठ पूजा होत रहे, बाद में कुंड, पोखरा आदि के किनारे गंगाजी के माटी ले आ के छठ मइया के स्थान बनत रहे, अब अधिकतर लोग पाका के छठ स्थान बना ले ले बा। शहर आ बढत जनसंख्या, लोग अब छत आदि प पुजा करत बा। बिदेस भा देस के क गो शहर में अरघ देबे खातिर प्लास्टिक के छोटे-छोटे टब के प्रयोग हो रहल बा। पहिले कांच बांस के बनल दउरा में पूजा वाला मय सामान रखाई, प्राचीन समय में हर एक व्रती पाछे एक एक गो दउरा रही, तब बहंगी से दउरा गंगा घाट/छठ घाट जात रहे। समय बदलल, परिवार के एगो दउरा में सामान आंटे लागल, जब कोशी भराउ तब दउरा बढे। अब त बहंगी के चलाना नइखे बाकिर तबो लोकगीत में बहंगी आवेला।
छठ पूजा के प्रसाद, छठ व्रती आ विधि: छठ पूजा मूल रुप से चार दिन के त्योहार ह, बाकिर एकर तैयारी महीना दिन से चलेला।
पहिला दिन : नहाय खाय – चना के दाल , लउकी के तरकारी आ भात खाइल जाला।
दुसरा दिन : खरना – दिन भर भुखे रहल जाला, राति खा रोटी आ चाउर के खीर खाइल जाला। अलग-अलग जगह अलग-अलग मान्यता बा, क जगह भातो-दाल बनेला।
तीसरा दिन : सांझ के अरघ (पहिला अरघ)
चौथा दिन : भोर के अरघ (दुसरा अरघ)
चौथा दिन : पारन
व्रतराज दुबे विकल जी कहले बानी कि छ माने छईंटी (बांस से बनल दउरा बुझल जाउ) आ ठ से ठेकुआ यानि कि छींटी भर ठेकुआ।
प्रसाद में ठेकुआ (अगरौटा प बनल) , मौसमी फल जइसे सेव, सेंतरा, केरा के घवद, गागल, कागजी नीबू, मुरई, उंखि, बताशा, कांच अदरख, कांच हरदी, कन, नशपाती, कोहंड़ा, नरियर (छिलका वाला) , अनानास, अंगूर, पान-सूपारी, शरीफा आदि ।
छठ पूजा में एगो होला कोसी भराई। जब कवनो व्रती छठ माई से कुछ मांगेला आ जदि इ कहेला कि पुरा हो जाइ त हम कोसी चढाईब, त एह के भखौती कहल जाला। कोसी भराई यानि कि छठ माई खातिर एगो विशेष पुजा। जवना में व्रती लो घर से ले के घाट ले सांझि के अरघ से अनगुते के अरघ ले जगरम करेला लगातार पुजा करत रहेला। नया जमाना में लोग रंगारंग कार्यक्रम करे लागल बा।
एह पूरा पुजा पाठ में जवन सबसे जरुरी ह उ ह साफ-सुथरा, स्वच्छता से पूजा कइल। पूजा-पाठ के बर्तन से ले के चुल्हा चौका बासन-बर्तन से ले के, व्रती लो के कपड़ा लत्ता तकले, सुते उठे बइठे से ले के हर जगह, कम से कम आ एकदम साफ सुथरा रहे के चाहीं। एह में ना कवनो बनावट बा ना कवनो तीतीम्हा। एह पूजा में खलिहा समान बासन बर्तने ना बलुक व्रती लो के घर दुआर, गांव के पोखरा आदि साफ रहेला कइल जाला।
छठ पूजा आ लोकगीत: मंत्र का ह? देवी देवता के आराधना करे के आ अपना बात के देवी देवता के सोझा सही से कहे के एगो तरीका। छठ पूजा के विधि ह मंत्र ह छठ माई प आधारित लोकगीत। प्राचीन समय से छठ माई के लोकगीत प्रचलित रहल बा, आ ओह लोकगीतन में व्रती लोग आपन हर भाव के राखेला। सदियन से बनत बनत इ कुल्हि गीत बनल रचाइल बाडन स। नया प जवन लोकगीत के नाव प लिखात बाडन स तवन पुरनके के बढाव ह। व्रती लोग अपना मनौती भखौती के आधार प गीतन में आपन मांग आपन डीमांड कहेला, घाट प बइठे के बेर गीत गावे के बार आपन बात कहेला। असल में एह महापर्व के मंतर ह छठ पूजा के लोकगीत।
छठ पूजा के संदेश: भखौती मनौती त आस्था के बात बा, एह प बतकही आजीवन चलत रही, बाकिर जदि छठ पूजा के बारे में पूरा पढल जाउ जानकारी जुटावल जाउ आ ओह से निकलल बातन प मुल्यांकन कइल जाउ त इ पता चली कि छठ पूजा, सामाजिक समरसता, प्रकृति प्रेम, प्रकृति रुपी उपहार के संरक्षण, समाज के हर वर्ग के साथ ले के चले के सोच, प्राकृतिक वस्तुअन के प्रयोग , स्वच्छ साफ घर परिवार गांव आ गांव के ताल-तलैया के साफ सुथरा राखे के प्रेरणा एह त्योहार से मिलेला। रुनकी झुनकी बेटी आ पढल लिखल दामाद मांगत घरी व्रती समाज में लिंग भेद के चुनौती देला लो त ओजुगे नीमन सुभेख भा पढल लिखल दामाद के मांगत व्रती अपना आधुनिक आ परिपक्व सोच के देखावे ला लो। संभव बा भविष्य में रुनकी झुनकी बेटी के संगे संगे खुब मन लगा के पढे लिखे वाली बेटी के मांग व्रती लो अपना छठ मइया से भव्विष्य में करसु लो। बाकिर, छठ पूजा से इ संदेश जरुर जाला कि पारिवारिक, सामाजिक विकास खातिर तन-मन से साफ सुथरा रहे के परी अपना आस-पास के हर वस्तु के साफ सुथरा राखे के परी, एक दुसरा के सहयोग आ सम्मान बिना भेदभाव के करे के चाहीं।
लेखक- नबीन चंद्रकला कुमार, इहां के मूल रूप से यूपी के बलिया के निवासी हई। अभी दुबई में अभियंता बानी, साथ ही आखर के सदस्य भी हई।