छठ पर्व का दूसरा दिन जिसे खरना या लोहंडा के नाम से जाना जाता है ,चैत्र या कार्तिक महीने के पंचमी को मनाया जाता है . इस दिन व्रती पुरे दिन उपवास रखती है . इस दिन व्रती अन्न तो दूर की बात है सूर्यास्त से पहले पानी की एक बूंद तक ग्रहण नहीं कराती है . शाम को चावल और गुड़ का प्रयोग कर खीर बनाया जाता है . खाना बनाने में नमक और चीनी का प्रयोग नहीं किया जाता है .इन्हीं दो चीजों को पुन: सूर्यदेव को नैवैद्य देकर उसी घर में ‘एकान्त’ करते हैं अर्थात् एकान्त रहकर उसे ग्रहण करते हैं। परिवार के सभी सदस्य उस समय घर से बाहर चले जाते हैं ताकी कोई शोर न हो सके। एकान्त से खाते समय व्रती हेतु किसी तरह की आवाज सुनना पर्व के नियमों के विरुद्ध है।
पुन: व्रती खाकर अपने सभी परिवार जनों एवं मित्रों-रिश्तेदारों को वही ‘खीर-रोटी’ का प्रसाद खिलाते हैं। इस सम्पूर्ण प्रक्रिया को ‘खरना’ कहते हैं। चावल का पिठ्ठा व घी लगी रोटी भी प्रसाद के रूप में वितरीत की जाती है। इसके बाद अगले 36 घंटों के लिए व्रती निर्जला व्रत रखते है।
मध्य रात्रि को व्रती छठ पूजा के लिए विशेष प्रसाद ठेकुआ बनाती है .
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