ये छठ जरूरी है
धर्म के लिए नहीं। समाज के लिए। हम आप के लिए जो अपनी जड़ों से कट रहे हैं।
ये छठ जरूरी है
उन बेटों के लिए जिनके घर आने का ये बहाना है। उस माँ के लिए जिन्हें अपनी संतान को देखे महीनों हो जाते हैं। उस परिवार के लिए जो टुकड़ों में बंट गया है।
ये छठ जरूरी है
उस नई पौध के लिए जिन्हें नहीं पता कि दो कमरों से बड़ा भी घर होता है। उनके लिए जिन्होंने नदियों को सिर्फ किताबों में ही देखा है।
ये छठ जरूरी है
उस परम्परा को जिन्दा रखने के लिए जो समानता की वकालत करता है। जो बताता है कि बिना पुरोहित भी पूजा हो सकती है। जो सिर्फ उगते सूरज को नहीं डूबते सूरज को भी सलाम करता है।
ये छठ जरूरी है
गागर निम्बू और सुथनी जैसे फलों को जिन्दा रखने के लिए। सूप और दौउरा को बनाने वालो के लिए। ये बताने के लिए कि इस समाज में उनका भी महत्त्व है।
ये छठ जरूरी है
उन दंभी पुरुषों के लिए जो नारी को कमजोर समझते हैं।
ये छठ जरूरी है। बेहद जरूरी।
यह कविता कुमार रजत ने लिखा है, जो दैनिक जागरण पटना में चीफ सब एडिटर हैं। पत्रकार होने के साथ खूब कविताएं भी लिखते हैं। अपनी पत्रकारिता में ये पटना शहर के जड़ को ढूंढते रहते हैं। मसलन “हर घर कुछ कहता है” और इसी तरह कई रचनात्मक कार्य पत्रकारिता में कर रहे हैं। मूल रूप से डुमरांव के हैं, मगर जन्म और पढ़ाई लिखाई पटना में ही हुई। 10 साल से पत्रकारिता में हैं। कविताओं में ये सीधे-सीधे अपनी भावनाओं को आसान शब्दों में व्यक्त करते हैं। “ये छठ जरूरी है” कविता 2014 में लिखी थी जो पिछले 2 साल से वायरल है।
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