ए गोड़े खरउवां ए दीनानाथ , हाथ में सोवरन के सांटी
ए कान्हे जनेउवा ए दीनानाथ , चनन बाटे लिलार
ए सब तिरियवा ए दीनानाथ , छेकेली दुआरी
ए सब डलियवा ए दीनानाथ , लिहली उठाई
ए बांझी के डलियवा ए दीनानाथ , ठहरे तांवाई
ए छोडू छोडू छोडू ए बांझिनी , छेकेलु दुआरी
ए सासु मोरे हुदुकाए ए दीनानाथ ,हमरा के डंडा से मारी
ए असो के कतिकवा ए तिरिया , घरवा चली जाई
ए अगिला कतिकवा ए तिरिया , तोरा बेटा होई जाई
कोई स्त्री छठ व्रत करके सूर्य नारायण को अर्घ्य देते समय उनसे प्रार्थना कराती हुई कहती है की हे सूर्य देव ! आपने पैर में खडाऊ पहन रखा है और आपके हाथ में सोने का डंडा अर्थात सुनहली किरणे है . आपके कंधे में जनेऊ और ललाट पर चन्दन लगा हुआ है
ऐ भगवान आपके द्वार पर सभी स्त्रियाँ प्रार्थना करने के लिए खड़ी है . आपने सबकी डाली को उठा लिया अर्थात स्वीकार कर लिया . लेकिन मुझ अभागिन बंध्या की डाली वही पर पड़ी हुयी है . आपने उसे अभी तक स्वीकार नहीं किया .
तब भगवान सूर्य कहते है – ऐ बंध्या स्त्री तुम मेरा दरवाजा क्यों रोक रही हो . किस अवगुण के कारण तुम मेरे द्वार पर खड़ी हो
तब वह स्त्री कहती है की बाँझिन होने के कारण सास मुझे बहुत झिड़कती है , ननद मुझे गाली देती है और मेरा पति मुझे डंडे से पिटता है .
भगवान सूर्य उस स्त्री की प्रार्थना से प्रसन्न होकर कहते है – ऐ स्त्री ! तुम घर चली जाओ . इस साल के कार्तिक के बाद अगले कार्तिक में तुम्हे पुत्र रत्न पैदा होगा
देहातो में प्रायः बंध्या स्त्री को अनेक प्रकार के कष्ट दिए जाते है . पुत्र पैदा नहीं करने के कारण उन्हें गलियां दी जाती है उन्हें पीटा जाता है . उन्हें मनहूस तथा अभागिन समझा जाता है . ऐसे ही एक बंध्या स्त्री के ऊपर में वर्णन किया गया है जिसकी मानसिक वेदना का पता उसकी प्रार्थना से लगता है
छेकेली = छेकना , रोकना
दुआरी = द्वार
डलियवा = डाली
तांवाई = अस्वीकृत
हुदुकाए = झिड़कती है
गारी – गाली
असो – इस साल
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